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________________ २९७ an विण बंधव सवि समद मी शिमि विण लवप रसोइ अतूली इसी प्रकार व्यतिरेक अपति विभावना मादि के उदाहरण मिल जाते है. व योजनाः मालोच्य राम की द बोजमा भी बड़ी विस्त है।पर प्रमुख छंद राय है। "रा नया द नहीं है। पहले के पृष्ठों में इसका परिचय दिया जा चुका संस्कृत प्राय और अपक्ष की छंद योजना पुरानी हिन्दी में पूर्णबना परक्षित रही है। विशेष तौर से हिन्दी मे तो अपग्रंक के कई छन्वों को अपनाया है। अपनाया ही नहीं उन इलार कर अपनी सम्पत्ति ही बना लिया है। रासदों में अब्दुल रहमान ने पूरा विश रासक लिया। श्री लिभद्र हरि ने प्रारम्भ में ही अपना द गक्ष मन्तव्य स्पष्ट कर दिया है। प्रारम्भ - शिव मणि रासह दिहि है जण मग हर मन भाद- मावि भवीयण मामलो और साथ ही रचना कीसमाप्ति पी भर. और पुत्र गबह ए बा भंडार अलिमा परि जापी इए की पर्ष एबीपि पछि मरह मरेसर राति बना कषि का मन्मान्य हो जय स्पष्ट पर मिझामा भरे मामत नहीं। प्रारम्बारों और ॥ १ ॥ मामानों की बिपी विडी।वारा पूर्व सीपीयने में मी मामारी करना होता की, और बदों के प्रयोग राको पहिवामानानी में अनेक मानवे विका व मारपरा-विपना लिा न जुमा श्री अगर वेद माटा रामेको विश्व स्वम महीमान, एक स्वर मानो - -बाला वियों का. स्त्री..
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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