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an विण बंधव सवि समद मी शिमि विण लवप रसोइ अतूली इसी प्रकार व्यतिरेक अपति विभावना मादि के उदाहरण मिल जाते है.
व योजनाः
मालोच्य राम की द बोजमा भी बड़ी विस्त है।पर प्रमुख छंद राय है। "रा नया द नहीं है। पहले के पृष्ठों में इसका परिचय दिया जा चुका
संस्कृत प्राय और अपक्ष की छंद योजना पुरानी हिन्दी में पूर्णबना परक्षित रही है। विशेष तौर से हिन्दी मे तो अपग्रंक के कई छन्वों को अपनाया है। अपनाया ही नहीं उन इलार कर अपनी सम्पत्ति ही बना लिया है। रासदों में अब्दुल रहमान ने पूरा विश रासक लिया। श्री लिभद्र हरि ने प्रारम्भ में ही अपना द गक्ष मन्तव्य स्पष्ट कर दिया है। प्रारम्भ - शिव मणि रासह दिहि
है जण मग हर मन भाद- मावि भवीयण मामलो
और साथ ही रचना कीसमाप्ति पी भर. और पुत्र गबह ए बा भंडार अलिमा परि जापी इए
की पर्ष एबीपि पछि मरह मरेसर राति बना कषि का मन्मान्य हो
जय स्पष्ट पर मिझामा भरे मामत नहीं। प्रारम्बारों
और ॥ १ ॥ मामानों की बिपी विडी।वारा पूर्व सीपीयने में मी मामारी करना होता की, और बदों के प्रयोग राको पहिवामानानी में अनेक मानवे विका व मारपरा-विपना लिा न जुमा श्री अगर वेद माटा रामेको विश्व स्वम महीमान, एक स्वर मानो
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-बाला वियों
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स्त्री..