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________________ "रार संपइ राउ अपंड पुषिन सुमि दूत विठि लिही भात्यलि जि लोड हलो पानइ अरि रि) देव इणि देव न दानव महि मंड हि मंडलवे मामब बाद में लंबा लडीयाली काम अधिक म छोडा दी। विविध वर्णनों में नार वर्णन, सेना वर्णन, 'विग्विजय वर्णन, कुन वर्णन गाधी घोड़ों सवारों आदि के वर्णन मिलते है।इनके कई वर्षन सात्मक और अतिश्योति प्रधान है। क्षेत्र वर्णन साधारण है परन्तु उनकी पाक में पर्याप्त सरलता है। वीर रस मधाम वर्षों में पित्य और भटकार प्रधान भाषा बलती है।इसी वर्षों में एक जीवट और बोग+ है। शब्दों में प्रवास, भरसता, और उत्साह परा इद बबन अनु-प्रासात्मक है। कुछ वर्षन देखिए:हाथियों का वर्णन- (1) चलिय गयबर चलियगयवर गुहिर गन्चत Cm ग फिरि फिरि गिरि सिरि पंवा JALA अंकुस बस भाव नहीं य काड पाट जिभागि घोड़ो व मारों का समय मालई बरवत स्पट परिसर - किरण बारकार प्रापिरंगण सम देविय र बार Omft निम्बिई र बरवर बार बार कई नारा विपि राम राम रतन - वीणामी परम्परा को विकसित करता है। इन का बाहुबली पास जाना और रालोमी, बिार, सर्म, भादि का मिलन वर्षन बड़ा ही admaamsunny
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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