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नृत्य विशेक, मुद्रा, हाव, पाव तथा स्थिति विशेष आदि तत्वों को देखकर यह कहा जा सकता है कि रंगमंच का स्पष्ट उल्लेख नहीं होने पर पी रास में मंच विशेष की स्थिति अवश्य थी।
। वर्तमान काल में रास की स्थितिः
रास जैसा गेय उपपक आज भी अपनी जीवन्त विधाओं को लेकर विविध ज्यों में हमारे सामने सुरक्षित है। हमारे देश की लोक संस्कृति अनुश्य है। राम वैसी सांस्कतिक गेय उप रूपक की आयोजना देशके हर प्रदेश में अपने विभिन्न शिल्पी में देखी जा सकती है। जहां तक राजस्थान का प्रश्न है राजस्थान में राम मेलने की प्रथा आज भी है। मन्डलाकार बनकर विशेष अवसरों परस्थल विशेष को सजाकर उसी पर डंडों से वे ढोल बाग पर रास खेलते है। विभिन्न मंडलियों में भी रास चलने की प्रथा है। रामधारी नापक यक मंडल एतदर्थ यदिध है। रास गाया भी जाता है परन्तु पुरुषों की अपेवा स्त्रियों में इसका पवार अशिक है। स्त्रियों के समाज में रास की स्थिति विचित्र प्रकार की है। रास का या वर्तमान रूप अत्यन्त प्रसिदध है। यो रास के शिल्प का पूर्णतया प्रतिनिधित्व क ले वाला यहा कोई नत्य विशेष नहीं है परन्तु उसके थोड़े छोड़े तत्वविभिन्न विभिन्न प्रास्तों के मृत्य विशेष में बंट गए है। राजस्थानी लोक मृत्यों में जो नीषों और पीको मृत्य, नारों के मृत्य, नटों में मार बागड़ियों और गरमित्यगोलियों इन्डिोगी, करिया, और पिणारी का पावात्मक अभिवात्मक और मृत्य प्रधान मंगीतात्मक नार सवा इत्व रामपारियों की दीवार, पुलिसी के अभिनय प्रभान मार, बीकानेर के भनिन मका, गहीर टोल नक, डीडवाना और पोकरण की रामाली (
बारा) भारवाहकी कछी पोड़ियों का इत्य, गीत अभिनय, रीरिक बलों की का, मत्व तथा वाइयों से समन्वित मारवाड़ का पुसली नृत्य, पानी की कानद गुजरी के नृत्य विशेष तथा मानी स्याल, मल्मन
दिनी राम के अभिनय को उदी आणि विवि में एगाने का प्रयास करने वाले और भी कई जंगली मूल्य कित्त,