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आचार्य श्री का संजम सिरि से वरण कराना होता था यथा जिनेश्वर
पूरि दीवा विवाह वर्णन रास इस शुभ अवसर पर अथवा पर्व पर उनके अनुयायी NTEE मला कब मानते थे बेउल्फुल्ल ढोकर नृत्यलय, ताल, गीत आदि द्वारा आचार्य भी को श्रद्धाम्यति देते थे अतः राख का मावेजन होना स्वामा कि था। साहित्यिक रूप व विल्प योजना:
साहित्यिक दृष्टि से मूल्याकन करने पर रास या रासक संगीत नृत्य, रुग साल, छन्द, क्रीड़ा, अभिनय आदि उक्त सभी अंगों के समन्वय का समूह है। वस्तुतः रासक का सम्बन्ध उक्त अंगों से ऊपर दिखाया जा चुका है। रासक या रात का स्वरूप उद्धत गेय उपरूपक के रूप में उल्लास प्रधान होता है। अतः साहित्यिक दृष्टि से इसके जिल्प जन्यस्त्वों का विवेचन इस प्रकार किया जा सकता है
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रासक गेय उपकपक है जिसकी कथा बद्म में कम व पद्म में अधिक
अधिकांश पद्म में ही होती है।
उसमें अनेक नर्तकियां हो
विभिन्न राग का समावेश हो
अनेक हो।
५-यात का हो।
अनेक प्रकार के
हो
वह मों में विपक्व हो ।
अनेक मुम, दो साथ क्रीड़ा करें। पुच्छ अलग
feat aण नववा समवेत मृश्य । का इति अनिवार्य हो । से
१०.
११- विकिप्रकार के कृत्यों का माने
१० वा एक निश्चित स्थान या मेव पर हो । मंत्र
राव
निधास्थान
हो
।
किया जा सकता है। रंग की सूचना भीरा और एक साहित्य का उल्लेख करने वाले बाबीन