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है।इनमें रासक और हल्लीसक ग्वधन गेय उपक के अन्तर्गत आते है। इनमें उद्धव तत्व का समावेश अधिक था और अमृण का आशिक । अत: अनुमानतः यह कहा जा सकता है कि रासक और तीसक में उपस्वतावत्व की अधिकता हो जाने के कारण उसकी क्रीडा यारास जन्य जिल्प में वर्ष यावीरत्व समाविष्ट हो गया होगा और ज्यों ज्यों उसकी रण प्रधान प्रवृत्तियों बढ़ती गई ये रासक वीरत्व प्रधान काव्य बनते गए और दसरी ओर वे रासक जिनमें मणता का तत्व आदिक था धीरे धीरे कोमला प्रधान हो गए और कोमल प्रवृत्तियों बाते में सकारास रूप में बलते रो, और यह परंपरा आग मी में काम के कप में सुरक्षित मिलती है।
वस्तुतः जन चि के इस बदलते हुए प्रभाव के कारण रासक में उद्धत तत्व की वृद्धि और गेयता तथा मृत्य होने से वह एक गेयता प्रधान उपप हो गया।' बता ११वीं शताब्दी में ही राम उपम्पक माना जाने लगा। नाट्य वर्षक बैंछ प्रसिध सम्धों को देखने पर उसमें नाट्य रासक और रासक का उल्लेख मिल जाता है। रासक में अभिनय की प्रधानता बढ़ी और साहित्य दर्पण में भी नाट्य रासक और रासक अड्डों का उल्लेख देखकर यह कहा जा सकता है कि उस समय जनता मैं रा का यक के स्म में पर्याप्त प्रचलन हो गया थाारलावली नाटिका पी को गीत माट्य की मापी गई है।
पर 7 को के पास गईनया विश्व मी पायी नृत्य, गाम और अभिनयमा किरा कर उनी विषय बनीवासी थी। मा. पवीं जनाइदी के वियप पीक
गीतियों में करीब रथमार या त्या मावेश होने लगा ।अत: स्थापक मामे बालीका र अपशवर जैन रासों
प्रमाण मापीर बाती. मौसम स्वामी स्थति भर, आदि मी जहित्य नागिन नारी प्रसाद द्विववेदी • -11 मायाविर कौवा संस्करण). 11