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३. इनमें संगीत तत्व का पूर्ण समावेश है।
४- नृत्य और अभिनय भी इनमें प्रधान है।
(v) डल्लीक्षक के विषय में एक संकेत यशोधर कृत कामशास्त्र की जयमंगला टीका में मिल जाता है वह "मंडल में होने वाले स्त्रियों के उस नृत्य को जिसमें एक नायक होता है, हल्लीसक कहता है और प्रमाण में वह गोपियों बहरि का उदाहरण देता है।' हेमचन्द्र के काव्यानुशासन (५० ४४५-४४६) में इल्लीसक और राम शब्द का उल्लेख मिल जाता है। उपदेश रसायन रास के टीकाकार ने रासक के शिल्प की सरलता के सम्बन्ध में बतलाते हुए लिखा है कि "वर्चरी और रासक ये प्राकृत प्रबन्ध इतने सहज व सरल है, कि इस पर कोई भी विद्वान पुरुष इन पर टीका नहीं लिखना चाहता ।"
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(vi) श्री मद्भागवत के तो पाच अध्यायों का नाम ही रास पंचाध्यायी है।' अब्दुल रहमान के संदेश रासक में राम की जगह रासय या रास्ता मिलते है जो संभवतः रासक का ही अपभ्रंश है। शुभंकर ने गोप क्रीमों को ही राम कहा
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और जय देव तो रास हरिहर सरस वर्तते ही कह डालते हैं।
(VI) उपदेश रसायन राम्र के टीकाकार ने राग या गीतों की भांति गाया जाने वाला भी बताया है, जिससे स्पष्ट हो जाता है कि प्राकृत भाषाम संज्ञक प्रबन्ध पर्याप्त सरल होते थे और वे दे
मैं रची गई बर्बरी और
भाषा में अनेक रागों में गाए जा सकते है। टीकाकार में उसने अनेक छंदों का होना भी बताया है।" रासक धन्द के वनों का विस्तृत विवेचन बाट मे और स्पष्टता से किया है। जिसके कुवार में परिवाम निकाले जा सकते हैं:
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२ री कि वृत्तिनाथ प्रायः कोपि विश्व
स्त्रीमा नेता मदेवको गोपस्त्रीवां यथा हरिः
३-श्री
४- गोवानी क्रीड़ा मत्यपि -
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त्रपइटिकाको मात्रा पोव पायगा: सर्वे चित्र ताल लय न्वियाचा (बागप: काव्यानुशासन, पृ० १८०)
रामे मी विद मला