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रास के शिल्प का विवेचन किया है जिससे रास के उत्तरोत्तर परिवर्तित होने वाले कप का पर्यवधन किया जासकता है।वस्तुतः यह इल्लीसक रब्द विभिन्न विद्वानों के द्वारा भिन्न भिन्न अर्थों में प्रयुक्त किया गया है जिसमें "रासा में अनेक नवीन तत्वों का समावेश होता है उनका संप में विवेचन इस प्रकार है।
(1) बाण मट्ट ने अपने समय तक रास में नृत्य का आयोजन होना बताया है। इस तरा के विशिष्ट नृत्य के आयोजनों के प्रमान परित अनेक मित जाते है। राम के इन भन्डलों को हरिवंश पुराण के टीकाकार ने जिस प्रकार चक्रवाक की शादी है उसी प्रकार नागभट्ट ने रासक मण्डल के लिए बाव शब्द को उपमान जुना है। इस प्रकार इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि बाप के समय राम इत्या अन साधारण में प्रचलित हो गया है।अतः बाप पट्ट ने इसे एक उपस्मक विशेष कहा है।
(1) काम पुत्र के प्रणेता वात्स्यायन ने भी लीक अथवा परक नल्य के साथ गान के आयोजन का भी उल्लेख किया है।'
पावप्रकाशकार गरबासमय ने रासक के नृत्य आयोजन में नायिकाओं की संख्या का विधान किया है। उसका कहना है कि पिन्डी बंध के साथ नायिका १० या की मस्या में कोय करती है, मेरा हो।'
(M) अभिनव गुणोत्व किया बाम, उसी को इल्लीमा है।' रासक को उस मक बाप मापद में लिकिगा -भाव-प्रस्थानपाकिा-और-विहारामा तीसकसीवि रामोन्टी प्रवी नि-यानि इस परिणाम के बायपाट -
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-बा-डा. वासुदेवार अपवाल- चतुर्व अध्याय। एकीकडील ४. रोहा प्रवाह गरिमन्नत्यन्ति मासिका पिही दिया रांडवा-बाबा-शारवासना
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