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संप्राप्ता हुवा मुकाम मुकाम का ढोल वागा । तब जायए डूंगर वे धवल हर
दीसिया लागा ( १९-३१) ।
राजा अमलेश्वर से उस समय छत्तीस वंशों के राजा आकर मिले उपहार देने लगे।
राजा अमल दास प्रदेश की रक्षा केलिए सबसे पहली पेट पाल्डणसी से हुई। दूसरी भीमा भोज से। फिर धैर्यवान कल्याणसी, जर पक्षी क्वलक्षी, कामाडि, उजन, सुरजन, मेर, महवन आदि सभी राजाओं से मिले। इस प्रकार छत्तीस एकत्रित हुए वर्णन की परिजन बैली विभिन्न राजवंशों के वर्णन के रूप में देखिय
गोदा कामाहितौ राजा राजथर सोलीक्या माहि छ सबल हाडा माहिती बीट अथवम प क्लम। 15 वाडा व रिम मलहर छोड माहित उनाथ नाय । वागडी व डूंगर कान्ड साल विरहर | धावता व डागा, स्याबोधा इसा एक केला देवा का नाम लीजइ । कनेक्टवर सूती सद्रीय क माहितौ कवम कवम । रिवि सारंग बुरु नराम बाबूमा मोडि हरपति लाला बैच बाळ | माट माहि का गागर तिलोकखी, कढ बाल माहि मा art नाफा बारहट क लाऊ के | इसा एक ते केवा हेका का नाम लीजै । कोष्ट बारस्ट का बैंक इसा एक देवा देवी का नाम ही कष्ट वह सूप छत्तीस ही मंदी ही राजीक एक की। इलों में ही नहीं यार बाक, बलामी लियों में स्वार्थ
के प्रति उत्पाद छा गया मोटी और बोली सुन्दरिया अपने पतियों
प्रेम को, उनके स्वार्थ को देखकर हो गई।
बिसरे व बार काटा बार लाम भोजन उस चालीस का घाट बाद का लाठी मोठी मा प्रौढ़ा पोडस वार्ष की रानी
१ देव बैठ भरवार का पूरिकां
देखती फिरे है । (६४)
स्था में कवि का विरदानात उत्साह में चौगुनी गर्मनी का प्रयाविरियावद के
नष्ट -
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वृद्धि कर बैठा था।
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