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ततीय पाण
अध्याय... आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य की क्या परंपराएं और क्या उडिया:
(4)
था परम्पराएं
जैन रचनाओं के निमाण में परम्परा को पुष्ट करने वाली परिपाडियों इन परंपरामों को प्राणान्वित करने के कारण- परम्परा शब्द का यही अर्थ- अनेक जैम कथा काव्य-उदय कथा तबका विकास- परम्पराम-परंपरा का सम्बन्ध कृति की कथात्मकता से -पटना में वैविध्य और मौलिकता के काख परंपराओं का निमान- जैन क्या काव्यों के नायक- महान-तीर्थकर और बलाका पुरुष क्या परम्परागों का शिल्प- वैविध्य बल मौलिकता राधा जीवट का समावेश- स्था की रचना में सम्भवतः मौलिकता- एक ही क्या को विभिन्न मोमें रखने के कारण वर्णन क्रम वस्तुयोजन और बा शिप में विविष्य के कारण परंपराओं का जन्म. इन या परंपराओं का अध्ययन कविकर और भावाय क्यों । एक ही महापुरुष पर विभिन्न नामों वाली लिया. विभिन्न विषयों पर विभिन्न मोलिली जामे बाली रचनाएं- विभिन्न कनिमों का एक ही घटना पर विभिन्न प्रतियामौलिमा- स्था परम्पराओं के मूल में-मौलिक अथा अकि बध परंपरा-बाबावरल और जम समाज का क्या परंपराग - निमा- उपलब्ध प्रमुख स्थाएं और घटना -अति प्रधान और घटना प्रधान - चरित प्रधान नेपिनाथ स्वामी, थलिमाघटना प्रधान रबमानों को मार- बिनबस पडेगा-प्रसम्म चरित-सत्यपुरीय गया- बालाराम- मुद्रावडी बाई- मापुसक्यू- इन कृतियों के पारस्परिक बन र विभिन्न सम्म सो परस्पर अन्तर राम और का था परम्परा
मार- प्रबन्ध और परिव में परंपराओं काम और war. विविध वर्षनी और सहारनी इबारा परंपराओं का नया विविध रस्मार. परव काल में इन रमाओं का विकास-14) गबनीमा काम भरनों का TET पीयों की पल-
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