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भाषा शास्त्री विद्वान डा० मुनी विमार पटी ने इसका सम्पादन किया है। यह ठाकुर जयोतिरीश्वर की गड्य रचना है।रचना के वर्णन प्रकारों और शिल्प की प्रौदता को देखते हुए यह साज ही कहा जा सकता है कि इसके पूर्व भी मद्य की रचनाएं मिलना बहुत संभव है नायिका वर्णन, रितुवर्णन, प्रबानक क्या श्मशान आदि बड़े ही प्रौढ़ बन पड़े है। इस प्रकार मैथिली गद्य को प्रौढ़ता अस्वीकृत नहीं की जा सकती! गद्य के क्षेत्र में इस रमा का एक अपना ही महत्वहै। प्रसिद्ध विद्धवान सुनी तिकुमार चटर्जी भी इस रचना के गद्य की प्रौढ़ता स्वीकार करते है। पैथिली गद्य के विकास में योग मे वाली इस रचना के गद्य की सम्पन्नता निस है। यही नहीं गय काव्य शैली में प्रति इस रचना का महत्व १५वी तादी में उपलब्ध श्री माणिक्य सुन्दर मूरि विरचित प्रसिद्ध गट्य रजना पृथ्वीचन्द बरित से किसी भी भाति कम नहीं है ।अतः गय का सौष्ठम वर्णन की चित्रात्मकता, भाषा का प्रवाह और प्रासादिकता का अनुशीलन करने के लिए ही यहा वरलाल के कलात्मक मद्याच उधत किए जा सकते है जिनकी गद्गात्मक पुषमा मालक इष्टि से दुष्टव्य है।
भायिका वर्णन में परम्परित उपमानों का सौन्दर्य देसिप:उज्वल कोमल कोहित सम त बालंकार पंचगुण संपूर्ण परम अकठिन मार पर इस्त्र प्राय गान युगल पीन मार डाका श्रोणी धीर दखिनाव काकृति नानिबाप मार ति मिति गुने समन्वित पुष्टि मा बेच्न वाम मालार पुत्व के
पी पुने सम्पूर्ण कोका। कमिनि नायिकामदेवक नयर बाल बरामिक चान्द बस्न पुर। मक जीरीर अइसन कोकाक रंग मान बहमारक बलका अइसन माक सीना बहन कान कार लया इन विरनी पाल जि अइसन अधर । समें दाखिल हम वादामे देवक पार अइसन वाहामिति (ोहित) ।
"देशिर परमानी
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