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कान में यही स्वर धे कि राजपूत पुत्र और स्त्रियाँ जीवित सम में मुसलमानों को आत्मसमर्पण नहीं करेंगी। अत:पुर से जहर के मुंए की लपटें मुसलमानों को इस हार का आत्म सम्मान पूर्ण करारा उत्तर देगी। हुआ भी यहीकषि ने अचलदाय की मृत्यु का ज्या राषपूर्वो की इस भूमिल एवं असंगत स्थिति का बड़ा ही मार्मिक एवं काव्यात्मक वर्णन किया है:
पीववियो वा वापि सहर की माडर जुगति हव हत्या हरपुर दिया वेगा वैणि बिहामि १९४)
गडा मीची मोठीकी रिच ही अभिस्य मृत पारौ सदा अबर राइ अनेक सदा पाइस जमीन कहि की अबसर की
पढ़या र शानिय मुनिया बस छतीस यही नहीं, अन्त में कवि ने समस्त रानियों को जौहर की धपती बाला का भंगार कराया है वर्षन का सौन्दर्य और वीर रस का काम्य दृश्य बहा प्रस्तुत होता है जो अपनी पोडजी वालाई समी बनी जौहर के स्कृतियों से अपनी काम को सजा लेती है। वर्ष की प्रवाह रमा के उत्थान को पीरोपियों का ता मा सरकार बरसा रोमाटिका स्थानीय वम पीच परख एवं बीब या मागाव गाव सौम्य वर्ष
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मोदो अवरिपरिबार भाषीया रामरामारि मळम पीर मोर्टमा परि मात्रै हुदै नीषण हर गली बार कि fat पेक्षा किमतीका परमा