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नाह वण्ड नरलोड व जानियो महासती अन मेल्ही मेहर उदक रिषि दिनि तोइ afa asat तद आप, हरपायी ठरपी करी चाक ही चालइनहीं बेटर अवछडि बाप नीमनि क्रमनि नाह माई बरि भोजा तपइ प्रजा की मन पाधरा मरण देखि परिवाह बापैता मिरवत छलि, परिकुली छत्तीस डी जात्या स्वामि समाय, सीस माणस पास इस एकि पाल्हा की पूछि पूठि एकि पातलतणी उलि गावा आगी हूवा अस दिन वेल उठि
(४८-६४)
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गढ अनिये माबी वा मिले राइ परणीक
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घर
कवि मे माह की सेना की मान से मना हामी पोटे, पैक आदि मी को देखकर प्रस्तुत की है। एकसान नामो दूसरे कालीन की भांति दिखाई पड़ा था।
गाधा
बार बार लक्ष्म व वनमिति चवरामी मइगल डी भर देत, बाल शाह अडीच केरह (६७)
में दोनों
मारगोटी हुई राजपूतों की मोहवीन
अपने दी यों के हाथों के आाधारण बारों को देखकर मुध हो बा श्री ही नहीं, बूढी रानिया, गोही कहा था प्रौढ़ा स्त्रियों भी अपने