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विरs a fafe भागला काला कुलत पैकि जायस ना गुण हैं वरपर बाप त्यजीय विद्वेषि धन धनवान सुधर सरवदे
भोजन कर करवला
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रसियर जिन प्रिय मिरवीय हरिचिय दिई परिरंग
are सभी जैन का रचनाओं की तरह ही है, परन्तु भी वर्णन परम्पराओं की दृष्टि से इसमें जैम क्रम स्पष्ट परिलबित नहीं होता ।
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कृति है जिसमें कवि ने मत के मादक उस्ता बसंत की की मधुर पदचाप काम का मधुमय भागमन, अमराइयों का उल्लास, उपमानों की श्री सूक्ष्मा, कानन की उत्थान अंगठाइयां और सुमायुध के सम्मेलन शस्त्र के विविध प्रयोगों का वर्णन किया है। जिनके कवि की वाणी विष्कित और गारपरिचय मिलता है।गार का इतना अधिक उत्तान वर्णन तत्कालीन
बैग कवियों में नहीं मिला क्योंकि
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वार कर उसका रविता कोई कवि नहीं है।
पूरी रचना का में किडी गई है। रचनाकार में रचना का प्रारम्भ सरस्वती की नाक है:
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लिएं बी पर कर वापि दाहिने बाजू (१)
अलंकार
पूरी कृति गक प्रधान यूजर की में दिी गई है। भाषा सरल, सरस, बड़ा कोमलकान्त है । कवि ने
है। विमानसून पावों की दृष्टि की है। पूरे काव्य में दर्द का एक में विभित किया गया है।
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