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। हिन्दी के आदिकाल का जैनेवरलोकिक) . साहित्य ।
___ आदिकालीन रवनामों में लौकिक काव्य दृष्टि से रची हुई कृतियां भी उपलब्ध होती है। जैन कवियों इवारा प्रनीत अद्यावधि गिवने काम उपलब्ध हुए है उनके काव्य सौष्ठव और भाषा शिल्प का अनुमान करने के लिए इन बेमेतर कवियों के काव्यों का यहा एक संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है। इन काव्यों की रचना के मूल में धर्म प्रधान दृष्टिकोण पाषा उपलब्ध नहीं होगा। इन रचनाओं में लगषग सभी सुन्दर प्रबन्ध है। इन कृतियों की विषय वस्तु सुगठित है। इनका पद-साहित्य ब्रम्टव्य है। अलंकार तथा की इष्टि से भी जैनेवर (लौकिक) कृतियाँ तत्कालीन पर्षन पहधतियों या काम्य परम्परामों पर्याप्त वास रखती है। प्रायः ये सभी रचनाएं प्राचीन राजस्थानी अथवा बनी गुजराती की रसमा प्राचीन अन की भी मिलती है।यह पी सम्भव है कि इन नेवर और जैन कृतियों ने एक दूसरे को प्रभावित भी किया हो। इसलिए संविषय हिन्दी के इस चैनेवर साहित्य का परिचय प्राप्त कर लेना आवश्यक है। इस हौकिक सत्य का अध्ययन दो खों किया जा सकता
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