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________________ १३८ उनके मूल में है। प्रेरणा के रूप में यह धर्म इन रचनाओं में विक्ष्यमान है।कहीं कहीं तो यह धर्म रचनाओं की पृष्ट भूमि तक बन जाता है। कर्म विपाक, पुनर्जन्म आदि जैन दर्शन की विविध धारागों का जन समाज में प्रचार करने के लिए जैन कवियों कागों में अनेक स्थलों पर उपदेष्टा बनवा दीर पड़ता है। उपदेश और जैन दर्शन के ये तत्वउसे कवि से प्रचारक बना देते है। डा. कोण के अनुसार रचना का आधार नियों के कर्म विपाक का सिद्धान्त प्रतीत होता है। इसी को सिद्ध करने के लिए जैन कवि इतिहास के निवृत्ति की उपेक्षा कर उसे स्वधा से बोल मोड़ दे । इसी कर्म सिद्धान्त की पुष्टि के लिए जैन कवि स्थल स्थल पर पुनर्जन्मवाद का सहारा लेता है।अप साहित्य की रचना की पृष्ट भूमि प्रायः धर्म प्रचार है। जैम लेखक प्रथम प्रचारक है फिर कवि। या की भारत सत्य पर आधारित है, नहीं खा सकता, की यह कहा जा सकता है कि प्रबारक होते हुए पी जैन कविय ने समा धान में समाचार क्या नैतिक मिछानों की स्थापना की है, या उम निष्ठावों को कवि ने विविध स्थानों और काव्य के आधार पर डाला है। इस प्रकार इन रचनाओं के मूल में धर्म प्रावधारा बनकर आया है कि काम ही नहीं। इनमें रचनाकारों का साहित्य-जन-कप मिल पाता पर तभी बाबण दापिनी रिया सको। यो । म कवियों का आवई व या न कामी प्रतिनायक का विधान भी मलिनागकवि मे या विमान और घटनाओं को चमत्कार बनाने वापरा, मंचया, बोंगादि की प्रष्टि की जो गावों NITIौतिक सुष्टि है। महाभारत और पुराणों की विभिन्म प्र माणे वियों ने अपने मौलिक परिवर्तन Trt, T rयो स्थान सम्बन्धी प्रयास मौलिक ज्या मनिलाम और पारस इन्ट रिय बाले भनेको पानीको कलियों में पानी की दृष्टि र मागास उपक पारी भाईसमय।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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