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इस प्रकार युग की तत्कालीन परिस्थितियों को समझ कर जैन धर्म के इन दार्शनिक विद्यायों का अध्ययन करने से इनरवनामों के साहित्य की सम्पन्नता और काव्य के गुणों का मूल हो सकता है। अतः कृतियों के अध्ययन के पूर्व पृष्ठभूमि के रूप में जैन वर्तन के विधान्तों का अध्ययन परम आवश्यक है।