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है उम्र या कहते है। विवित्र रंगों के साथ इसकी संगति र शस्त्रकारों इसकी परिभाषा दी। रंगीन जीव मी विविध वर्ष बतलाए गरी श्यामनुष्यका मम प्रभावकार लोककल्याण कारक ज्या वस्वी-प्रवृत्तिमय बनता है। इन बयों के अतिरिक्त का विनाश मी परमावर गरम भाव को सबफ कर ही मनुष्य को प्रत्येक कार्य का भावमा करना चाहिए। निवविवाद
मग शिति का विवेचन भी मिलता है। इसे देववार या पनि यता बाब एवं भामाबाद भी कहा गया है। नियति नवन अधिक प्रलय नहीं देता। महावीर में भी अनेक स्थलों पर अपने दूनो नियति का विरोध किया है। महावीर २ उपयों स्पष्ट है कि निशिवाय एक प्रकार की am मा प्रत्यक कार्य हिमाबित होने में मिा की भावना पह। नियति बारी बार में वास्तब में उनके अनुशार नियतिवाद थमा दैववाद गीका भार का है। यह को पापियों मे अपना पाप याने ग और गायों को अपनी कायरता पो मारा है। देववाद का मारा गति मिलती । पेसा का पाता है परन्तु वः जाति नहीं, सोमा, बीवन का पल है। वस्तुतः मिनिवाब, एक प्रकार की गणना, पापीर पाय
वीरवाना बोरो परको भावना र परमा पी. पारपानी गायी वादी र पराकी माकोसी पानी पल मागणी त्या दृष्टि
कमहीना की।'पानी विवानिति का विरोध और
amar यि पर परवर्ती -
पतिमोरमात्मनः ।.. ___ कटियाग -
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