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जैन धर्म के प्रथम सिद्धान्तः उनका प्रकार वीर प्रतिपावन :
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बारम्भ काल
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आदिकालीन हिन्दी कृतियों के हिप का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि इन रचनाओं में जैन धर्म प्राणधारा के रूप में विमान है। जैन धर्म के प्रचार प्रसार तथा जीवन में सदाचार का मूल्य समयने और उसे जनता के सामने रख उसके लिए ही इन जैन कवियों ने इस विहाल वाहिय का जन किया है, तथा प्रकारान्तर से धर्म और दर्शन के विधानों को जनता तक पहुंचा है। अतः इन रचनाओं के मूल में प्रेरणा के रूप में विमान जैन धर्म तथा उसके प्रमुख दार्शनिक ािन् काष्ठ परिचय कर लेना परमावश्यक है।
जैन
में जैन धर्म और उसके दार्शनिक सिद्धान्तों का परिचय इस प्रकार है:जैन धर्म का उन और विकास।
जैन धर्म अत्यन्त प्राचीन धर्म है। जैन धर्म के
दिन दीर्घकर महावीर स्वामी मी १०० वर्ष पूर्व होने वाले भी पार्श्वनाथ को ऐतिहासिक महामान किया गया है। धर्म की एक डाटा मात्र ही मान किया बीच गया है पर यतिका निराकरण हो है
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का बारम्भ का ८०० वर्ष ६० पूर्वपान दिला गया है। पर डा० हर्मन कोणी और
There can no longer be any doubt that rahva was a historical personage. According to Jain tradition he must have lived a hundred years and died 250 years before Rahavir. Bis period of activity therefore Creponds to the 8th century 8.0.
मोइन्ट्रोडक्सन टू सेम के वियो
"There is nothing to prove that israhva was the founder of Jainin. Jala tradition is animous in asking Rishabha the first Tirthankar (as ite founder) there aay be some thing historical in the tradition which nakes him the first tirthankarl. see Indian Antiquary Volume IX. page 162-163.