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के लिए अनेक ग्रन्ध लिसे किन्तु दार्शनिक ग्रन्धों के अतिरिक्त जैन आचार्यो ने व्याकरण, खगोल, गणित, राजनीति, आयुर्वेद और अलंकार ग्रन्थों पर भी स किने लिखा। पौधों की अपेक्षा में इस क्षेत्र में अधिक उदार । प्राका अतिरिक्त अपांच गुजराती, हिन्दी, राजस्थानी मेला, तामिल और विशेष सन्मही साहित्य में भी उनका योग अत्याविकी नहीं आदिकाल का इतना वैविध्यमब वि न मि बत्कालीन प्रादेशिक पामानों की रचनाओं में सबसे अधिक है। अभि में जैन धर्म ने हेमन्द्र को आचार्य प्रान किया और इससे तत्कालीन सान पान तथा तप स्याम की भावना में भी पर्याप्त परिवर्शन हुए।
सायिक दृष्टि से महाकाव्य रूपक काम, गबमारिक तथा बीर काव्य ऐतिहासिक या नाटक बम्पू कोग, काय सभी नागार्गी की इस कात देन है। रामायण पुराण और भारत ने अमन को और अब रिसोपानों को इन्होंने मद पान था शानिवि माया। लोकगीवन को बा ने उनी बाबार बार नैतिक निधाराले बलाने बाला कालिया प्राइन कवियों में रखा पुनराम, माना
है। नियमाना। बाकी मार PF प्रसको मारा दिया। नीति को समय
सानों Ram गंग'वतः भाविकालीन दीantी जैन सत्य प्रेरणा
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मारास
गावित्री डा०हरिवंश