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(२) जैन धर्म:
बौद्ध धर्म की भाति जैन धर्म भी आदिकालीन कालो की पृष्ठभूमि समझने में पर्याप्त सहा ता करता है। जैन धर्म अपने सदाचार के कारण आठवीं सदी के राम्टों के समय से ही प्रगति पर था। गुर्जर सोलंकियों ने इस धर्म में अपूर्व योग दिया। लेकिन युध प्रिय सामन्तों के कारण हेमचन्द्र जैसे विद्वानों को भी जैन धर्म के प्रमुख सिदान्त अहिंसा को कोड़कर तलवार का गुणगान प्रारम्भ किया। इस्लाम के आक्रमण के समय जैन धर्म ने अपना स्वरूप बदला। पर व्यापारी वर्ग त्या कु द्धा श्रमिको वैसे ही क्टर में रहे। राजाजों में ही नहीं जैनियों में कई वीर जाति के लोग भी थे जिनसे कभी भवन, क, गुप्त भी हार मान मैठे थे।उदाहरणार्थ ओसवाल, प्रवाल, आदि वे अब - व्यापारे वसति लभी- को ही अपना मूल मानने लगे। अनेकों मन्दिर बने आइ, जैसलमेर, बीकानेर पाटय तथा गुजरात के जैन तीर्थ एतदक उइत किए जा सकते हैं। पौधों की बिगड़ी साधना के कारण जैन मुनियों में भी निर्वाण मारी पाविजण की भावना प्रकारान्तर से स्पष्ट होने लगी।
जैन धर्म के प्रमुख तीर्थकर महावीर ने भी इध की तरह लोक भाषा प्रा और अपश को अपनाया। भाषा की दृष्टि से दोनों बायोलम साहित्य में नये अध्याय का प्रारम्भ करते है। इसका का। विशाम्बर सावाय रावस्थान या र मास और दिगम्बर का प्रचार दलिखा । ब्राहम और जान अब धर्मों सिद्धान्त जोर
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