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में संवैया की दो पक्क्यिा
-११८ रोला तथा १९ में प्लवंग इंद प्रयुक्त हुआ है।
यह सब सप्तक्षेत्री रासु क डी ) त्रिभुवन दीपक प्रबन्ध में प्रयुक्त गुजा है जैन कवियों इबारा प्रयुक्त या देशी तथा विविध वालों में गाया जाता है। प्लाट का प्रयोग कालिदास के विक्रमोशी के पर्व बैंक के अपभ्रंश के
शो में प्रयुक्तहमा है। अतः कवि ने सप्त क्षेत्रीरा में इस नीतिक द का पुरानी हिन्दी में सर्वप्रथम प्रयोग । उदाहरण देखिए:
जो सदि रवि ममाणिहि गइ महिमंडलि वा वर राज पविय जिन सासिपि निम्मल ग्रह मात्र सारिका व्यापई
मयमंतु श्रीसं बना मिण सायन (सप्तवेत्रिय रा- पद १०५) (ग) पेयड या कीराव
इस कृषि में रोता, बोहा, बौपई और चौपाया प्रबलित है। इसमें प्रयुक्त सबैया देशी डालों के है। रचनाकार ने कार वाला दोहा प्रयुक्त किया है दिशी दा की परम्परा में यह कृति का योग देवी है।इस रचना में से अग्नि कीबो मिलता पर की थी पति उल्लेखनीय है, जिसमें कवि रखना राई में हमें जीन बार बावन मारना
प्रका ४ देशी व दृष्टय लिो प्रथम बोका विजन बत्यन्त महत्वपूर्ण है। मैव बत्व इनकी प्रधान विशेषता है। बारों दो के उबारम वा दिए जा रहे है:(a)- भाव मणीय मत परिबीय टोडर पति मोक्ताबए
पलको पाल पालीवारिरि पानी बन्छ कारए बाबीन पिता शिहि किम कामो बाबा मावटी लीव पीवापर
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बीमर रिधिमा बसीव बरोबर पाले पति बई वधामनी रीउर हरिवीउए हरिशीन मषि निहाले पिकड रास पु.२४-३.1