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देशी ढाते हैं तो देवी व पी तथा साथ ही कई मिश्रबंधों के प्रयोग भी इष्टव्य है। देशीकों के रूप में आदिकाल की इन रचनाओं का अपूर्व योगदान है। इन रचनाओं में प्रदिवपदी, विष्म दिवपदी,समबम्पदी, अषसमचतुष्पदी. विषमचतुष्पदी,पंचपदी, षटपदी, अष्टपदी, विर्भगी, त्रिभंगी, चतुर्दगी, पंचगी आदि अनेक प्रकार के मिल जाते है।अड्यावधि इमारे आलोच्य काल में जितनी रचनाओं का विशेषण किया गया है, उनमें प्रयुक्त प्रमुख हड इसप्रकार :
५- नौपाया -ौरठा
८-उस्लाला ११. रड्डा १४-हरिगीतिका १५- पेपटिका -आदोल १- या
त्रिभंगी .. पाबा ११- नीति - जाति ४-भाबट्ट १५ परि २६- मरहट्ठ
२८- धवल ९- सरस्वती धवल ३० सारसी
३२-कुंडलिया
- लोक -द्विवपदी -उपवाटि -इन्द्रवत्रा ११. उमेहमा विलयिा ४१- रथोद्धता - स्वता - aaor -पाईंडविडीव ४५- मालिनी - नाराब
- माशा
४४- भावी . बाबान ५.- बारी ५१. धनाराब ५७ मिषदी
की का वर्गी कस प्रकार कर पको