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पर विस्तृत प्रकाश डाला है। यही ताल वृत्त आगे कई विभिन्न गणों में favra हो जाते है और तब इन प्रत्येक अवरों की मात्राएं समय के माधार पर निर्धारित कर दी जाती है। इस प्रकार ताल में निर्मित विभिन्न ताल गर्यो में विभिन्न विभिन्न मात्राओं का नियमन होता है। यह नियमन मामा गणना से स्पष्ट होता है। इस तरह इन दों में मात्राण और वालगण में दो प्रकार के गम होते है। वास्तव में प्राकृत और अपभ्रंश के छंद का शिल्प संस्कृत वर्ष इत्वों से प्रकृत्या भिन्न होता है क्योंकि इन दो प्रकार के वृत्तों में जो पी संगीत होताहै वह छंद की दृष्टि से भिन्न होता है। यह संगीत बाल वृद्धों में अधिक हरित इमा है। ताल वृत्त विभिन्न ताल और मात्राओं पर आधारित होते हैं। प्रत्येक वागण मात्रागण के शिल्प से भिन्न होता है। प्रत्येकताल का प्रारम्भ प्रारम्भिक
द से अंतिम शब्द तक होता है जब तक वा वाल प्रारंभ नहीं हो जाता। ये बाल, वृत्त कई प्रकार के होते हैं जिनमें ४,५,६,७ और सामान्यतः ८ मात्राओं का क्रम होता है। मामाद परिमाण अथवा ( measurement ) के लिए प्रयुक्त होती है तथा इन छंदों में यह समय निर्धारण भी करती है।
इन मात्रिक और वालों में संगीत का समावेश होता है वा यों कहें कि वेद संगीत के उपयुक्त है।' इस पर विस्तृत प्रकाश इसीलिए डाला वृत्तों जा रहा है क्योंकि उत्तर अप की इन कामों में ये ना ही चिक प्रयुक्त हुए है तथा उनका संगीत की दृष्टि से भी पिल्य विशेष है। अनेक रा के आधार पर कवियों ने ब्दों को बचा है। विभिन्न रागों के विभिन्न रौ
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१- देखिए भारत कौमुदी पृ० १०६०-प्रो० एच०डी०वेलकर का अपनेक मीटरख नामक लेख The word "Matra is derived from the root to measure and means a mit of measuring, here of measuring time. There are many diffirent Talas, but the chief among them, so far as the tal vrattas are concerned, are those in which the rest se regularly stressed after the lapse of 4 or 5 or 6 or Matrue or their multiples. But even among these the Commonest La the Tale of 8 Matras which may or may not be divisible into two parts of 4 matras each. H.D.Velankar.
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