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आकाशवाणी करके पानी की सूचना दे देना आदि सभी रूढ़ियों का समावे किया जा सकता है।" वस्तुतः अनेक रचनाओं में ये अलौकिक घटनाएँ मिलती है। मतः यह कहा जा सकता है कि कड़ियां तत्कालीन कथाकारों तथा काव्यकारों मैं बहुत ही अधिक प्रचलित तथा लोकप्रिय रही होगी। वस्तुतः ये अलौकिक पेटनार्थ और अलौकिक तत्व इन आलोच्य काव्यों के नायकों से घनिष्टता रक्षते होंगे। अथवा नायक ही अपनी क्षमता से इन पर शासन करता रहा होगा। युद्ध मैं विविध विद्याओं का प्रभाव दिज्ञाने करने के बाद मनुष्यों को पुनः जीवित करना, असंख्य व्यक्तियों को धराशायी करके भी मरने नहीं देना, आदि अनेक मौलिक रुड़िया जैन कवियों की अपनी है। साथ ही इन रूढ़ियों में मंत्र मल का जादू भी देखने को मिलता है। मंत्र पाठव-चरित में मुनि का कुपित होना, प्रद्युम् और जिमत्व, विद्याविलास, जंबूस्वामी तथा असंभव कार्यों का सम्पादन विदूया वह और मंत्र द्वारा मागीरोध कर देना, तथा स्वयं का रूप परिवर्तन कर जादू से उसके पति का रूप धारण करके सकी स्त्री को चमत्कृत करमा प्रद्युम्नुदुवारा इतक व्यक्ति को जीवित कर देना, और जिनवत्थ बडवई मैं जिन का समुद्र वैतरण करना तथा विमान मर होकर चम्पापुरी पहुंचमा, देवी के प्रभाव से विद्याविलास पवाड़ों में विवाचर का वही fara में प्रयोग होना आदि सभी पढ़ियाँ नि पाती है जिनका सम्बन्ध
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कि पटना से स्पष्ट होता है।
इन कड़ियों के वर्नग से काव्यों के स्थानों की रक्षा में अपूर्ववदिध हुई है तथा रस और हास्य का समिश्रण रचना के वर्ष क्रम का प्रवाह
पूर्ण लाता है।
१- विश्वार के कि देवि प्रस्तुत प्रय के भाग २ के अध्याय १,७ -- विरचित तथा हिन्दी "परदेश्वर मावी रासा पक गया ल
बैंक में
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(ग)
र ८। वर्ष १९
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४,०९०-१०० में लेखक का प्रण वरिय पर लेख ।