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________________ १४/प्राधुनिक कहानी का परिपार्श्व विचार, रीति-नीति, भाषा, विशिष्ट शब्दावली, जीवन की रंगीनी आदि का समावेश कर कलात्मक वैशिष्ट्य उत्पन्न किया है ( दे: नरेश मेहता, मोहन राकेश, कमलेश्वर, राजेन्द्र यादव और अमरकान्त की कहानियाँ ) । कुछ कहानियों में लोकगाथात्मकता प्रमुख होती हुई दृष्टिगोचर होती है ( दे: फणीश्वरनाथ रेण, शैलेश मटियानी या मार्कण्डेय की कहानियाँ)। वे 'ऐनेक्डोटल' हो जाती हैं । नारी कथाकारों ने भी आज के जीवन की परिवर्तनशीलता और नारी-सम्बन्धी मूल्यों को बड़ी मार्मिकता से अभिव्यक्त किया है ( देः उषा प्रियंवदा, कृष्णा सोबती, मन्नू भण्डारी, शिवानी, शषिप्रभा शास्त्री, अनीता औलक, विनीता पल्लवी, सुधा अरोड़ा की कहानियाँ ) । जीवन की आशानिराशा, भग्न आकांक्षाएँ, विषमता, विषैलापन, कटुता आदि सब कुछ उनमें है। किन्तु इतने पर भी एक ओर तो उनके और परम्परा के बीच में विभाजन-रेखा खींचना दुस्तर कार्य है, तो दूसरी ओर उन्हें 'नई कविता' के समकक्ष भी नहीं रखा जा सकता, क्योंकि आज की कहानी में समाज-सापेक्षता है, संघर्ष है। वह वाह्याभिमुख है । वह हमें चुनौती देती है। 'नई कविता' में सामाजिक और राजनैतिक जीवन की विषमता के फलस्वरूप उत्पन्न घुटन है । अपवाद दोनों में हैं, किन्तु व्यापक रूप से कहानी अब भी कहानी है । कथानक का ह्रास तो संसार भर की कहानियों में दृष्टिगोचर होता है। किन्तु इसकी क्षतिपूर्ति पात्र के चरित्र, उसके मन को कुरेदने और उसके व्यक्तित्व को उभारने में हो जाती है ( देः सुरेश सिनहा, रवीन्द्र कालिया तथा ज्ञानरंजन की कहानियाँ )। कुछ कहानियाँ ऐसी भी हैं जिन्हें सरलतापूर्वक रेखाचित्र, निबंध, संस्मरण और रिपोर्ताज, इनमें से किसी एक की कोटि में रखा जा सकता है । पश्चिम में कहानी-साहित्य के विकास पर दृष्टि रखते हुए इस बात पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए, क्योंकि वहाँ उसकी जड़ एडीसन और स्टील के 'स्केचेज़' में मिलती है। पश्चिम में
SR No.010026
Book TitleAadhunik Kahani ka Pariparshva
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size18 MB
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