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________________ ८२/आधुनिक कहानी का परिपार्श्व नहीं । उन्होंने उसे गम्भीर प्रर्थवत्ता प्रदान करने में निरंतर प्रयास किया है और हिन्दी कहानी की सूक्ष्मता को जीवन-यथार्थ से सम्बद्ध 'स्थूल' कहानियों के क्षेत्र में भी ले आए और प्रेमचन्द की 'कान', 'पूस की रात' आदि कहानियों की परम्परा का नए रूप में विकास किया, यह बात स्पष्ट रूप से जान लेनी आवश्यक है। इलाचन्द्र जोशी ने मानव-मन का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करने और व्यक्ति के अहं को स्पष्ट करने का प्रयत्न अपनी कहानियों में किया है । यद्यपि हाल में उन्होंने फ्रॉयड आदि के सिद्धान्तों की अत्यन्त कटु अलोचना की है, तो भी अपनी पिछली कहानियों में वे फ्रॉयड, ऐडलर और युंग के सिद्धात्तों से अधिक प्रभावित हुए हैं। उन्होंने बड़ा सीमित दायरा लिया है और कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि जीवन से पलायनवाद करने में ही उन्होंने वास्तविक नियति समझी है। उनकी कहानियों में जीवन का यथार्थ नहीं, मानव-मन का सत्य मिलेगा। 'डायरी के नीरस पृष्ठ' में उनकी सारी रचनाएँ इस बात का प्रमाण हैं । ____ यहाँ जिन लेखकों की चर्चा की गई है, उनके अतिरिक्त दोनों ही धाराओं में मिलाकर उपेन्द्रनाथ अश्क, चन्द्रगुप्त विद्यालंकार, चण्डीप्रसाद . 'हृदयेश', रायकृष्णदास, वाचस्पति पाठक, अमृतराय, ओंकार शरद आदि अनेकानेक कहानीकार हैं, जिन्होंने एक-से-एक अच्छी कहानिर्या लिखकर हिन्दी कहानी साहित्य को समृद्ध करने का प्रयत्न किया है। वास्तव में ऊपर कुछ प्रमुख कहानीकारों की विचारधारा और रचनाओं तथा शिल्प का परित्रय देकर यह स्पष्ट करने की चेष्टा की गई है कि स्वातंत्र्योत्तर काल में जो भी परिवर्तन आए हैं, वे समय के अनुसार स्वभाविक रूप में आए हैं और यह एक प्रकार से कहानी कला का विकास ही माना जायगा, न कि परम्परा के प्रति विद्रोह । प्रेमचन्द तथा यशपाल ने एक ओर, और जैनेन्द्र कुमार तथा 'अज्ञेय' ने दूसरी ओर जिस परम्परा का निर्माण किया था, आज की कहानी वस्तुतः उसका आगे एक विकास ही है, इसे ऊपर विभिन्न लेखकों मे सन्दर्भ के स्पष्ट ही किया जा चुका है।
SR No.010026
Book TitleAadhunik Kahani ka Pariparshva
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size18 MB
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