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आधुनिक कहानी का परिपार्श्व / ७७ सामाजिक दायित्व निर्वाह की भावना और परम्परा से विद्रोह के नाम पर एक-दो की संख्या में नहीं सैकड़ों की संख्या में लिखा जा रहा है और नए-पुराने सभी लेखक इस दिशा में प्रवृत्त हैं ।
यद्यपि इस समय मनोविज्ञान के आधार पर कहानी लिखने की प्रवृति प्रमुखतः पाई जाती है, तो भी प्रेमचन्द - परम्परा के कुछ कहानीकार अपनी प्रौढ़ रचनाओं से कहानी - साहित्य को समृद्ध करते रहे । ऐसे कहानीकारों में वाचस्पति पाठक का नाम अग्रगण्य है । वे हिन्दी के उन मूर्द्धन्य कहानीकारों में हैं, जिन्होंने आधुनिक हिन्दी कहानी का स्वरूप रूपायित किया है । उनके दो कहानी संग्रहों में 'कागज़ की टोपी', 'यात्रा', 'सूरदास' आदि हिन्दी की अत्यन्त महत्वपूर्ण कहानियाँ हैं । पाठकजी मुख्यतया प्रेमचन्दकालीन कहानीकार हैं, पर उनमें सूक्ष्मता, मनोवैज्ञानिक चित्रण और मानव मन पर होने वाली प्रतिक्रियाओं का कुशल अंकन है । यदि उनमें सामाजिक संचेतना और यथार्थ की गहरी पकड़ प्राप्त होती है, तो व्यक्ति की मर्यादा और व्यक्तित्व की प्रतिष्ठा की दिशा में प्रयत्नशीलता भी लक्षित होती है । वे वातावरण का निर्माण करने में अत्यन्त कुशल हैं और उनकी कहानियों में लिए गए पक्ष की विराटता झांकती है । सामयिक भावबोध, परिवेश की यथार्थता और अपनी संगत प्रतिबद्धता के कारण पाठक जी हिन्दी कहानी की ऐतिहासिक परम्परा की महत्वपूर्ण कड़ी हैं ।
जैनेन्द्र कुमार आत्मपरक विश्लेषण की धारा के प्रवर्तकों में से हैं। वे एक दार्शनिक और विचारक कहानी-लेखक के रूप में हमारे सामने आते हैं। उन्होंने प्रायः मध्यम वर्ग की मनोवैज्ञानिक असंगतियाँ और कमजोरियाँ परखी हैं । वे व्यक्ति पर जोर देकर उसके मन का विश्लेषरण करते हैं। दार्शनिक प्रवृत्ति के कारण उनकी कुछ कहानियों में दुरूहता और अस्पष्टता का जाना स्वाभाविक ही है । विषय समाग्री अधिकतर वे अपने आसपास के जीवन से ही लेते हैं । फलतः उनकी कहानियों केकथानकों का क्षेत्र बहुत व्यापक नहीं है। उनकी कहानियों में मनोरम खण्ड- दृश्य हैं,