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आधुनिक कहानी का परिपार्श्व/१४१ ने पहचाना है और उसके बारीक-से-बारीक रेशे को अत्यन्त कुशलता से अभिव्यक्त किया है। ___'दोपहर का भोजन' में निर्धन घर में दोपहर को खाने के समय जब लोग इकट्ठे होते हैं, उस स्थिति का बहुत ही करुण एवं मर्मपर्शी चित्रण किया गया है । सिद्धेश्वरी का पति गाय की तरह जुगाली करते हुए धीरे-धीरे खाता है । सिद्धेश्वरी की मनःस्थिति एक मथकर रख जाने वाली दयनीयता का संकेत करती है और वह दोपहर का भोजन उसी स्थिति के असंख्य भारतीय परिवारों में होने वाले भोजन का प्रतीक बन जाता है, जिसमें यथार्थ के गहरे रंग हैं, व्यंग के पैने बाण है और मन-मस्तिष्क को चीरकर रख देने की क्षमता है । 'ज़िन्दगी
और जोंक' में एक नौकर का चित्रण है, जो मरना नहीं चाहता, इस लिए जोंक की भाँति ज़िन्दगी से चिपटा रहता है । लेकिन लगता है कि ज़िन्दगी स्वयं जोंक सरीखी उससे चिपटी थी और धीरे-धीरे उसके रक्त की अन्तिम बूंद पी गई । यह एक प्रश्नचिन्ह उपस्थित करती है । इस निर्धनता और विपन्नता एवं तथाकथित आधुनिक समाज में जीवन का मूल्य आखिर क्या है ? आदमी जोंक है या जिन्दगी-कौन किसका खून चूस रहा है । इस कारण स्थिति को अमरकान्त ने बड़े प्रभावशाली ढंग से उजागर किया है । 'इन्टरव्यू' में उन लोगों पर तीखा व्यंग्य है, जो नौकरी देने को व्यवसाय बना लेते हैं और देश के करोड़ों नवयुवकों के साथ मज़ाक करते हैं। इसमें आज की नई पीढ़ी की विभ्रान्तता, कुंठा एवं निराशा की भावना यथार्थ परिवेश में बड़ी सजीवता के साथ उभरी है। इसी प्रकार 'एक असमर्थ हिलता हाथ' में अंध-विश्वासों, रूढ़ियों, जाति-प्रथा एवं प्रेम की आधुनिक विसंगतियों पर मार्मिक व्यंग्य हैं।
अमरकान्त की कहानियों में कोई शिल्प-प्रयोग नहीं है या राजेन्द्र यादव की भाँति कलाबाजियों का चक्कर नहीं है । वस्तुत: उनकी कहानियों में जीवन ही इतनी सशक्तता से बोलता है कि उन्हें चौंका