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आधुनिक कहानी का परिपार्श्व/१३१ स्पष्ट है कि नरेश मेहता का दृष्टिकोण आत्मपरक है। वह जीवन का सहचर होता है, यह ठीक है । पर सहचर एक दूसरे के प्रति उत्तरदायी होते हैं । सहचर होने का कोई एकतरफ़ा रास्ता नहीं है । उसी प्रकार साहित्यकार को भी जीवन के प्रति उत्तरदायी होना पड़ता है, तभी सहचर की भावना का सफलतापूर्वक निर्वाह हो सकता है। नहीं तो होगा यही कि जीवन एक भिन्न दिशा में गतिशील होगा, साहित्यकार सर्वथा विपरीत दिशा में । और, यह दूरी एक दिन इतनी बढ़ जायगी कि दोनों ही एक दूसरे के लिए अपरिचित और अजनबी बन जाएंगे। उनकी सबसे अच्छी कहानियाँ वे हैं, जो उन्होंने जीवन के यथार्थ को लेकर लिखी हैं । इनमें "किसको वेटा','दुगा' तथा 'वह मर्द थी' अत्यन्त महत्वपूर्ण कहानियाँ हैं । इन कहानियों को देखकर मानव-जीवन के यथार्थ को पहचानने की उनकी सूक्ष्म अन्तर्दृष्टि एवं उसके यथार्थ परिवेश को अभिव्यक्ति देने की उनकी समर्थता का परिचय प्राप्त होता है। उनमें व्यापक मानव-जीवन के परिप्रेक्ष्य को संस्पर्श देकर आधुनिकता के नवीनतम आयामों को उभारने की चेप्टा की गई है । इधर वे आत्मपरक दृष्टिकोण लेकर कहानियाँ लिखने के प्रति अधिक प्रयत्नशील रहे हैं । 'निशाऽऽजी', 'चाँदनी, 'अनबीता व्यतीत' तथा 'एक इतिश्री' ऐसी ही कहानियाँ हैं जिनमें व्यक्ति है और उसकी मनःस्थितियाँ हैं, उसकी प्रतिक्रियाएँ हैं या पड़ने वाले इम्प्रेशन हैं-जिन्हें सूक्ष्म अभिव्यक्ति देने का नरेश मेहता के पास अपूर्व कौशल है। जिस प्रकार आज की कहानी को उन्होंने नूतन कलात्मक परिपार्श्व दिया है, उसी प्रकार जीवन के बहुविधिय यथार्थ रंगों को भरने का दायित्व उन्हें निभाना हैं, हमारी उनसे यह माँग सहज एवं स्वाभाविक है । नरेश मेहता की कहानियों में जीवन का स्थूल पक्ष या विराटता का बोध चाहे न प्राप्त होता हो, पर उन्होंने निष्ठा, गरिमा और मर्यादा का संतुलित चित्रण किया है। अपने पात्रों को उन्होंने पूर्ण सहानुभूति दी है और उन्हें उचित संगति में प्रस्तुत किया है, जिसकी आधार-भूमि व्यापक है ।