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श्री भगवत् स्वरूप भगवत्'
साहित्यके प्राकाशमें इस नक्षत्रका उदय अभी कुछ वर्ष पहले ही हुआ है। पर पाते ही इसने जनताकी दृष्टि अपनी ओर खींच ली; क्योंकि इस नक्षत्रमें अनुपम प्रकाश है, ज्वाला है और साथ ही है एक अपूर्व स्निग्धता।
'भगवत्' जी कवि हैं, कहानी-लेखक हैं और नाटककार हैं-खूबी यह कि जो कुछ लिखते हैं प्रायः बहुत ही सुन्दर होता है। आपकी कविता नितान्त आधुनिक ढंगकी है-वह युगसे उत्पन्न हुई है और युगको प्रतिध्वनित करती है। वर्तमान मानव-समाजका ढांचा जिन आर्थिक और सामाजिक सिद्धान्तोंपर खड़ा हुआ है, वह जन-समूहके लिए निरन्तर संकट और संघर्षको वस्तु बने हुए हैं। प्रापका कवि संघर्षसे जूझ रहा है। 'भगवत्' अपनी कवितामें उसी संघर्षका प्रतिनिधित्व करके हमारी सामाजिक चेतना-धाराको विश्व-व्यापी मानवचेतनाकी महापारासे जोड़नेका प्रयत्न कर रहे हैं। वह कहते हैं:
"कर्मक्षेत्रमें उतर रहा हूँ, लेकर यह अभिलाषा:
समझ सके संगठन शक्तिकी, जनता अव परिभाषा।" आपकी भाषा बहुत ही स्वाभाविक होती है । नाटकोंमें पाप विशेष रूपसे ऐसी भाषाका प्रयोग करते हैं जो आम लोगोंकी समझमें आ जाये।
अब तक आपको निम्नलिखित रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैंउस दिन, मानवी (कहानियाँ), संन्यासी (नाटक), चांदनी