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हाँ, अव चमका मेरे समीप
वह प्राणमयी निर्माण दीप
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में हुआ अजर जगका महीप,
अव कुछ न सुनूंगा राग भंगकर ओ सुकवि, चतुर !
शत शत शताब्दियोंका श्मशान,
हो उठा ग्राज फिर मूर्तिमान,
लुट चला विश्वमें प्रेम दान,
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लय खेद हुआ, गत भेद हुए किन्नर, नर, सुर !
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