________________
(कविता-संग्रह), समाजकी प्राग (नाटक), चूंघट (प्रहसन), घरवाली (व्यङ्ग काव्य), भाग्य (नाटक), रसभरी (कहानियाँ), प्रात्मतेज (स्वामी समन्तभद्र), त्रिशलानन्दन, जय महावीर, फल-फूल, झनकार, उपवन-अन्तिम पाँचों गीत हैं।
आप ऐतमादपुर (आगरा)के रहनेवाले थे; और सन् १९२४-२५से लिख रहे थे।
खेद है कि भगवत्जी' अपने पीछे अपनी विधवा पत्नी और तीन पुत्रियोंको विलखते छोड़कर ६ सितम्बर सन् १९४४को दिवंगत हो गये।
आपकी अब तक १६ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।