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गीत
लय गीत मवुर, लय गीत मधुर ! है, है कवि, तेरी मदिर ताल , झंकृत वीणाकी ध्वनि विशाल , मैं सुनकर आज हुआ निहाल , हाँ, हाँ, फिर गा दे एक बार
वह गीत प्रत्रुर ! सन्निहित जगतका उदय अस्त , तेरी वह मादक ध्वनि प्रशस्त , मेरा जंगम जग अस्त-व्यस्त , वनकर स्वर लहरी मचल उठे,
फिर वह आतुर ! हो पुनः तरंगित गीत रम्य , अपवाद आज फिर हो अगम्य , हो अन्त रहित यह तारतम्य , वीहड़में कुछ लहलहा उठे
वन प्रेमांकुर ! ले मिला मिलाया सफल आज , विर लहरी गूंजे पुनः अाज , निर्माण नया हो स्वप्नराज , हो आलोकित मेरा निगान्त
- जग अन्तःपुर !
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