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विश्रुत जीवन
नई लहरने वदल दिया है
मेरा सञ्चित जीवन ;
नए रूपमें नए रंगमें
हुआ
पल्लवित मधुवन ;
अभिमंडित हो उठा आज
विश्रुत जीवनका कण-कण, यह प्रसिद्ध हैं, किस भविष्यपर दौड़ रहा यह क्षण-क्षण |
उर कहता है, कुछ खोया है
मन कहता है . पाया ; उद्वेलित कर रही नित्य यह
उभय
पक्षकी माया ।
विश्व और मैं और हुआ
क्या देख रहा हूँ सपना ?
ग्रह, यह लो निमेषमें ही
सव बदल गया जग अपना ।
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