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श्री कामताप्रसाद जैन
श्री कामताप्रसादजीका जन्म सन् १९०१ में सीमाप्रान्तके प्रमुख नगर कैम्पवेलपुर (छावनी)में हुआथा। आपके पिताश्री ला० प्रागदासजी वहाँ सरकारी फौजमें खजांची थे। वैसे वह अलीगंज, जिला एटाके रहनेवाले हैं। यद्यपि आपका वाल्यजीवन पेशावर, मेरठ और हैदराबाद सिंवमें बीता, और आपका अध्ययन मैट्रिक तक ही हो सका; परन्तु आपमें ज्ञानपिपासा और धर्म-जिज्ञासा जन्मजात हैं, जिनके कारण आपका ज्ञान और अनुभव उल्लेखनीय है । आप जैन इतिहास और तुलनात्मक-धर्मके प्रामाणिक विद्वान् और सुलेखक है। आपकी विद्यापटुता और बहु-श्रुत-ज्ञान को लक्ष्य करके "जैन एकेडेमी ऑव विजडम ऐंड कलचर" करांचीने "डॉक्टर ऑव ला"को सम्माननीय उपाधिसे आपको अलंकृत किया था। आपका साहित्यिक जीवन स्व० श्री ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीकी प्रेरणाका सुफल है । अापने 'भगवान महावीर' नामक पुस्तकको रचनासे प्रारम्भ करके अब तक लगभग ३०-४० पुस्तकें लिखी हैं। हिन्दी और अंग्रेजीके सामयिक-साहित्य-सिरजनमें भी आप सतत उद्योगी रहते हैं। आपने "जैन इतिहास"को पाँच भागोंमें लिखा है, जिसमें ३ भाग "संक्षिप्त जैन इतिहास" के नामसे 'श्री दि० जैन पुस्तकालय', सूरत द्वारा प्रकाशित हो चुके हैं। अभी हालमें श्रापका हिन्दी जैन साहित्यका इतिहास' नामक बृहद् . निबन्ध 'श्री भारतीय विद्याभवन', बम्बई द्वारा चालित अखिल भारतीय सांस्कृतिक निवन्ध प्रतियोगितामें पुरस्कृत हो चुका है-उसपर आपको रजतपदक प्राप्त हुआ है। यह सुन्दर रचना भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हो रही है। 'भ० महावीरकी शिक्षाएँ' नामक निवन्धपर आपको "यशोविजय ग्रन्थमाला, भावनगर से सुवर्णपदक प्राप्त हो चुका है।
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