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आपकी अन्य रचनाएँ भी पुरस्कृत हुई हैं। आपकी एक विशेषता रही है कि साहित्यरचना करना आपके निकट एक धर्म-कृत्य मात्र रहा है।
आपकी पुस्तकोंका अनुवाद गुजराती, मराठी और फनड़ी भाषाओं में हो चुका है। अंग्रेजीमें भी प्रापने दो-तीन पुस्तकें लिखी हैं। श्राप "जैन सिद्धान्त-भास्कर"के सम्पादक हैं और भा० दि० जैन-परिषद्के मुख पत्र 'वीर'का तो उसके जन्मकालसे ही सम्पादन कर रहे हैं । आपका
रा समय सार्वजनिक कार्योंमें ही प्रायः बीतता है। अलीगंजमें आप राजमान्य ऑनरेरी मैजिस्ट्रेट और असिस्टेंट कलक्टर भी हैं। अनेक सभा-समितियोंके सभासद और मन्त्री भी हैं।
श्री कामताप्रसादजी 'कवि'की अपेक्षा कविताको प्रेरणा देनेवाले साहित्यिक अधिक है। आपने 'वीर' द्वारा अनेक लेखकों और कवियोंको प्रोत्साहन दिया है। आपने कवितावद्ध कम्पिला तीर्थको पूजा और जैनकथाएं भी लिखी हैं । इन्होंने 'वृहद् स्वयंभूस्तोत्र का पद्यानुवाद किया है।
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