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प्रथम जातिमें ही करें निज ग्राचार - प्रचारको ; द्वितीय, जातिमें दें गुंजा वीणाकी भंकारको । लाख बुरे हैं, पर अच्छे हैं अपने ही हैं, इन भावोंके विना सफलता सपने ही है। सवके प्रकटित भाव आंचपर तपते ही हैं, अभिमत मिलता नहीं, न चिन्ता, अपने ही हैं । जब तक यों जातीयताका न चढ़ेगा रंग दृढ़ ; हो न सकेगा तब तलक विजय विघ्नका सुदृढ़ गढ़ |
धर्म-तत्व
वही राम मन्दिर कहलाता जहाँ विराजे हैं भगवान ;
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क्या करीमके मसकनको मसजिद न मानती हैं कुरान घन्य भाग्य हैं, मनमें मन्दिर, दिलमें है मसजिद प्यारी ;
प्रकृति देविने पुण्य-भावनासे की जिसकी तैयारी | नरने चूना गारा पत्यरसे कुछ भवन वनाये हैं ;
भव्य भावनाकी श्रंजलि देकर भगवान बुलाये हैं | नर - निर्मित मन्दिर मस्जिद स्मृतियाँ हैं मन मन्दिरकी ;
वाह्य क्रिया है साधन, वीणा गूंज उठे श्रभ्यन्तरकी । पण्डित - मुल्ले भोली-भाली जनताको बहकाते हैं ; नर-नारायण, मन्दिर - मसजिदके अनिल अनलसे बढ़कर दावानल वनती है, क्षमा क्षमाशीलोंका गुण है,
मिस प्राण गँवाते हैं ।
वीमारीकी तहमें व्यापी बहुमतको वीमारी है ;
दूपण है ;
धर्म मर्म है, भूषण है |
प्रपंचियोंका वल प्रचंड है, भले जनोंकी वारी है ।
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