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वायू अयोध्याप्रसाद गोयलीय
. जैन समाजमें बहुत थोड़े लोग ऐसे हैं जो वा० अयोध्याप्रसादजी गोयलीयको पहलेसे ही प्रत्यक्ष या परोक्ष रूपमें न जानते हों। ____ गोयलीयजी श्राज २० वर्षसे जैन-समाज और जन-साहित्यको गतिविधिमें सक्रिय भाग ले रहे हैं। उनके सीनेकी आग आज भी उसी तरह गरम है । समाज, देश, धर्म और साहित्यसेवाकी दीवानगी प्राज भी २० वर्ष पहलेकी तरह बदस्तूर कायम है।
अपनी सहज कुशाग्र बुद्धि, अध्यवसाय और अनुशीलनके द्वारा उन्होंने न्याय, धर्मशास्त्र, इतिहास, हिन्दी, उर्दू और संस्कृत साहित्यमें अच्छी गति प्राप्त की है। कथा, कहानी, कविता, नाटक, निवन्ध और प्रचारात्मक साहित्यके वे सप्टा हैं। 'दास' उपनामसे लिखी हुई उनकी हिन्दी और उर्दूको कविताओंका संग्रह प्रकाशित हो चुका है। और जैन इतिहास, विशेषकर मौर्यकालीन इतिहासके तो वे प्रामाणिक विद्वान् हैं। उर्दू शायरीसे इन्हें खास दिलचस्पी है।
सामाजिक जागृतिके क्षेत्रमें उन्होंने कार्यकर्ताओंको जोशीले गाने और उत्साहप्रद कविताएँ तथा युवकोंकी भावनाओंको सिंहनादका स्वर दिया। उनकी एफ जोशीली कविताके चन्द शेर मुलाहना हो ।