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श्री रामस्वरूप 'भारतीय'
'भारतीय' जी समाजके पुराने लेखकोंमेंसे हैं। प्रायः १० वर्ष पूर्व इनकी रचनाएँ 'देवेन्द्र' में तथा अन्य जैन और जैनंतर पत्र-पत्रिकाओं में निकला करती थीं । ये कर्मशील व्यक्ति हैं । इनमें समाज सेवा और देश- सेवाकी लगन है; विचार भी मंजे हुए और उदार हैं ।
श्रापकी कविताएँ भोजपूर्ण और शिक्षाप्रद होती हैं। भाषामें प्रवाह है, और भावोंमें स्पष्टता । श्रापकी एक कविता- पुस्तक 'वीर पताका' बहुत पहले श्री ' महेन्द्र'जीने प्रकाशित कराई थी । प्राप उर्दूके भी अच्छे लेखक हैं | उर्दूकी पुस्तक 'पंग्रामे हमदर्दी' श्राप होने लिखी है ।'
अगस्त श्रांदोलन में भारत-रक्षा-क़ानूनके श्राधीन जेल-यात्रा कर आये । जेलमें इन्होंने अनेक कविताएँ और संस्मरण लिखे हैं ।
समाधान
भिन्न-भिन्न सुमनोंमें समान गन्ध न होगी, भिन्न-भिन्न हृदयों में एक उमंग न होगी ; कोटि यत्न हों मत - विभिन्नता वन्द न होगी, शान्ति न होगी हीन वुद्धि यदि मन्द न होगी । सबके मनमें शक्ति है तर्क स्वतन्त्र विचारकी ; सबको चिन्ता है लगी अपने शुभ उद्धारकी ।
कुछ ऐसे हैं जिन्हें जगतसे परम प्यार है, प्राच्य कीर्ति है इष्ट, पुण्य श्रद्धा अपार है ; कुछ ऐसे हैं जिनपर युगका रंग सवार है, मनमें साहस है, उमंग है, जाति प्यार है ।,
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