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अभिलाषा
विपदाओंके गिरि गिर सिरपर
टूट पड़ें, पड़ जावें ;
मेरे नियत मार्गमें शतशः
विघ्न अड़ें, अड़ जावें ।
एक ओर संसार दूसरी ओर अकेला पर निराश साहस- विहीन हो कोने बैठ न
हो दरिद्रता, पर न दीनता
पास फटकने पावे;
हो कुवेर चेरा पर, मेरा,
मनमें गर्व न आवे ।
रहूँ निरक्षर किन्तु निरन्तर,
सुरगुरु और शारदा जैसा शिष्य-वृन्द हो मेरा ; तो विरक्त हो समझू दुनिया चिड़िया रैन बसेरा ।
शील सखा हो मेरा ;
होऊँ ;
रोऊँ ।
समता अगाध वारिधिमें
डूवे 'तेरा' - 'मेरा' ।
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राग-रंगसे हृत्-पट मेरा रंजित भले बना हो ; पर, सवपर हो राग एक-सा, थोड़ा श्री' न घना हो ।