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पंडित शोभाचन्द भारिल्ल, न्यायतीर्थ
श्री शोभाचन्द भारिल्ल, न्यायतीर्य, संस्कृत-हिन्दीके विद्वान् हैं। आप जैन-गुरुकुल व्यावरमें अध्यापक हैं। बहुत अरसेसे लेख और कविताएँ लिख रहे हैं जिनका धार्मिक जगत में पर्याप्त श्रादर है।
आपने अपने बड़े भाई श्री रामरतन नायकके 'असामयिक वियोगके तीव्रतर सन्तापको उपशान्तिके लिए-भावना' नामक कविता लिखी है, जो प्रकाशित है। संस्कृत 'रत्नाकरपच्चीसी'का हिन्दी पद्यानुवाद भी व्यावरसे प्रकाशित हुआ है। आपकी कविताएं आध्यात्मिक और तत्त्वदृष्टिसे हृदयग्राही होती हैं।
अन्यत्व
(१) पहले था मैं कौन, कहाँसे आज यहाँ आया हूँ; किस-किसका संबंव अनोखा तजकर क्या लाया हूँ ? जननी-जनक अन्य है पाये इस जीवनको वेला ; पुत्र अन्य हैं, पौत्र अन्य हैं, अन्य गुरू है चेला ।
(२) , पूर्व भवोंमें जिस कायाको बड़े यत्नसे पाला ; जिसकी शोभा बढ़ा रही थी माणिक-मुक्ता-माला । वह कण-कण वन भूमंडलमें कहीं समाई भाई ; इसी तरह मिटनेवाली यह नूतन काया पाई।