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क्षण भंगुर यौवन-श्रीपर यह
इतराता है इतना कौन , रुप-रागिपर मोहित होकर
शिशु-सम मचला करता कौन?
बिन पर विश्व विपिनमें करता
अरे कौन स्वच्छन्द विहार; वन सम्राट्, राज्य विन किसने
कर रक्खा सवपर अधिकार ?
रोकर कभी विहँसता है तो फिर चिन्तित हो जाता है; भाव-भङ्गिके नित गिरगिट-सम नाना रंग बदलता है ।' चित्र विचित्र बनाया करता
विन रँग ही रह अन्तर्धान , किसने चित्र कलाका ऐसा
पाया है अनुपम वरदान ? प्रिय मन, तेरी ही रहस्यमय
यह सव अजव कहानी है , कर सकता जगतीपर केवल,
मन, तू ही मनमानी है ! किन्तु वासनारत रहता ज्यो, त्यो यदि प्रभु चरणों में प्यार, करता, तो अब तक हो जाता भव-सागरसे वेड़ा पार ।
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