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पंडित नाथूराम डोंगरीय
पंडित नाथूरामजी डोंगरीय समाजके सुपरिचित लेखकों और कवियोंमें अपना विशेष स्थान रखते हैं। आपके लेख अनेक जैन और जनेतर पत्रोंमें छपते रहते हैं जो विषय, भाषा और भावकी दृष्टिसे पठनीय होते हैं। ___इन्होंने हाल हीमें एक पुस्तक लिखी है "जनवर्म", जिसमें जैनधर्मके मुख्य मुख्य सिद्धान्तोंका सरल और प्रभावपूर्ण भाषामें प्रतिपादन किया है। आपने 'भक्तामर स्तोत्र'का पद्यानुवाद रुवाइयोंकी छन्द-शैलीमें किया है, जो प्रकाशित हो चुका है।
श्रापकी कविताएँ विचार और भावकी दृष्टिसे अच्छी होती हैं।
मानव मन
विश्व - रंगभूमें अदृश्य रह
वनकर योगिराज-सा मीन , मानव-जीवनके अभिनयका
संचालन करता है कौन ? किसके इंगितपर संसृतिमें
ये जन मारे फिरते हैं, मृग-तृष्णामें शान्ति-सुधाकी
भ्रान्त कल्पना करते हैं। आशा और निराशाओंकी वारा कहाँ वहा करती; अभिलाषाएँ कहाँ निरन्तर नवक्रीड़ा करती रहती ?