________________
कवके फूल
क़ब्रपर नाज चढ़ाये फूल !
जव तक जीवन था तव तक क्षणभर न रहे अनुकूल । कण-कणको तरसाया क्षण-क्षण, मिलान अणु-भर प्यार, अव आँखोंसे वरसाते हो मुक्ताग्रोंकी धार । देह जव आज वनी है घूल ; क़नपर आज चढ़ाये फूल !
आज धूल भी जन-सी है नयनोंका शृंगार, काला ही काला दिखता था तब हीरेका हार |
कल्पतरु था तव पेड़ वबूल ; क़द्रपर आज चढ़ाये फूल !
विस्मृतिके सागरमें मेरी डुवा रहे थे याद, नाम न लेते थे, कहते थे, हो न समय बर्बाद |
मगर अव गये भूलना भूल ; क़द्रपर नाज चढ़ाये फूल !
सदा तुम्हारे लिए किया था धन - जीवनका त्याग, सींच-सींच करके सूत्रोंसे हरा किया था वाग़ ।
मगर तव हुए फूल भी शूल ; क़द्रपर आज चढ़ाये फूल !
"
अव न क़नमें आ सकती है इन फूलोंकी वास मुझे शान्ति देती है केवल, यही क़ब्रकी घास ।
शान्त रहने दो, जानो भूल, क़नपर प्राज चढ़ाये फूल !
३८