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विधवाओंके अश्रु न मेरी
नजरोंमें पाने पाते , नहीं आँसुओंकी धारासे
ये कपोल धोये जाते। 'हाय, हाय' चिल्लाता जग, पर
होते कान न भारी ये, नहीं मुखाती, नहीं जलाती,
चिन्ताकी चिनगारी ये।
जट होकर जड़के पूजनमें
__ 'निज' 'पर' सब भूला रहता , दुनियाके दुवकी चिन्ताका
बोझ हृदयपर क्यों महता ? पर, जो हृया, हो गया, अब क्या,
अब नो इनना ही कर दो, मनको बज्र बना दी, उममें
माहम और धैर्य भर दो।
'रोना' तो मैं सीन चुका है,
अब कुछ करना' बतला दी, उन कतंत्र्य-यनमें बढ़कर . . हैम-हम मन्ना मिचला दी।