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उलहना
कोमल मन देना ही था तो,
क्यों इतना चैतन्य दिया ? शिशुपर भूपण-भार लादकर,
क्यों यह निर्दय प्यार किया ? यदि देते जड़ता, जगके दुख
नप्ट नहीं कुछ कर पाते , त्रिविध-तापसे पीड़ित करके,
मेरी शान्ति न हर पाते। जड़तामें क्या शान्ति न होती ? |
अच्छा है, जड़ता पाता , किसका लेना, किसका देना,
वीतराग-सा बन जाता। अपयशका भय, कर्तव्योंकी
रहती फिर कुछ चाह नहीं, तुम सुख देते या दुख देते,
होती कुछ परवाह नहीं। लड़ते लोग धर्मके मदसे,
मेरा क्या प्राता जाता? दुखियोंकी आहोंसे भी यह,
हृदय नहीं जलने पाता।