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पंडित दरवारीलाल 'सत्यभक्त'
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'सत्य-धर्म के संस्थापक, पंडित दरवारीलालजीने, व्यक्ति और कवि दोनों रूपमें समाज और साहित्यमें अपना विशेष स्थान बनाया है। वह उच्च कोटिके लेखक हैं, विद्वान् हैं, विचारक हैं और कवि हैं । जीवनमें जिस साधनाका मार्ग उन्होंने अपनाया है और जिस मानसिक उथल-पुथलके द्वारा वह उस मार्ग तक पहुंचे हैं, उसमें उनका दार्शनिक मन और भावुक हृदय दोनों समान रूपसे सहायक हुए हैं कुछ पालोचक हैं जो कहेंगे, 'सहायक' नहीं, 'वाधक' हुए हैं। ___ जो भी हो, इसमें सन्देह नहीं कि 'सत्यभक्त' जो बहुत ही संवेदनाशील कवि हैं। उनकी कविता जव हृदयके भावों और मानसिक द्वंदोंके स्रोतसे प्रवाहित होती है, तो उसमें एक सहज प्रवाह और सौन्दर्य होता है। जिस प्रकार वह विचारोंको सुलझाकर मनमें विठाते हैं और दूसरों तक पहुंचाते है, उसी प्रकार उनके भाव भी कविताका रूप लेनेसे पहले स्वयं सुलझ लेते हैं। उनकी समवेदनाएँ पाठकोंके हृदयको छूकर ही रहती हैं। यह उनकी रचनाको बहुत बड़ी सफलता है । जो कविताएं प्रचारात्मक हैं या किसी अावश्यकताको पूरा करने के लिए लिखी गई हैं, वे इस श्रेणीमें नहीं पाती। ___ 'सत्यभक्त'नीने 'सत्यसन्देश' और 'संगम' नामक पत्रिकाओं द्वारा हिन्दी संसारको ही नहीं, मानव-संसारकी सेवा की है, और कर रहे हैं। उनके लेख मननीय और संग्रहणीय होते हैं । विश्वके अनेक धर्मोका मनन, सन्तुलन और समन्वय फरके 'सत्यधर्म की प्रतिष्ठापना करना-आपने जीवनका लक्ष्य बनाया है। वर्षामें 'सत्याश्रम'की स्थापना करके अव आप वहीं रहते हैं।
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