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अन्तिम वर
बहुतान्बह्या ग्रव आया हूँ,
भगवत्
श्री धननेको
लाया
अहंकारके ग्रहनें
शुटका
पता न पाया तेरे तडका
भूला या इस दिव्य तव्यको— ÷ तेरी छाया है !
कभी न जाना क्या अपना है, क्या जीवन सचमुच सपना है,
क्या यह ही कहना, जगना है,
ग्रानतत्व काया है !
नू है मेरा श्रीं' में तेरी
केवल अब यह वर पाना है, इसीलिए नेरा आना है,
फिर न कहूँ तेरे समझनें
तरी
माया हूँ !
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