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इनके विनाश नाश, और इनके संरक्षणमें रक्षा, तेरी है, सागर, निरावाव
यह जीवन-रक्षणकी शिक्षा । तू मान, निरापद है यह पथ, होगा इससे तू ही निहाल ।
जीवन-पट
जीवन-पट यह विखर रहा है तन्तु जाल सव क्षीण हो गया सारा स्तम्भक तत्त्व खो गया , पलभर भी अब रहना इसमें भगवन्, मुझको अखर रहा है।
सम्मोहनकी मधुमय हाला पी-पीकर मैं था मतवाला , नशा आज उतरा है अव तो जीवन मेरा निखर रहा है।
मृत्यु-लहरपर खेल रहा मैं सव-विपदाएं झेल रहा मैं, अन्तर्द्वन्द्व मचा प्राणोंमें यह समीर मन मथित रहा है।
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