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प्यार!
सजनि है, कसा जगका प्यार? स्वणिन रदिम-रागिने जगमग, तरल हास्यसे विकसित करजग, निर्मम रवि है सजनि,
. पाका करता है संहार। निधिका अंचल वीर फाड़कर, उज्ज्वल निज आमा प्रसारकर, तनका कर हार पूर्णिना
सजती निज शृंगार। कलिकाओंका हृन्य विवाकर, अपने तनका साज सजाकर, उनकी पीड़ा भूल अरे
वह बन जाता है हार। उनि है कैसा जग-व्यवहार !
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